प्रशासक के रुप में शिवाजी महाराज ने
अपने अधिकारों का गलत उपयोग
कभी नहीं किया।
आप सभी को मालूम हैं
एकाधिकारशाही या हुकुमशाही यह
निरंकुश शासन व्यवस्था का विक़ार लाती हैं।
उस वक्त के सारे राजा, महाराज, बादशाह
एवं सम्राटों को इस ने ग्रस्त किया था।
दुनियाँ के इतिहास में
यह पहले सत्ताधीश थे।
जिसने अपनीही सत्ता का
विकेंद्रीयकरण किया था।
चुने हुये विशेषज्ञों द्वारा शिवाजी महाराज ने
‘राजव्यवहार कोष’ नामक शासकीय
शब्दावली का शब्दकोष तैयार कराया था।
यह महाराज की परिपूर्ण व्यकित्व
और प्रगल्भता का परिचायक है।
उसके अनुसार उन्होंने
प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए
आठ मंत्रियों की परिषद बनाई।
जिसे अष्ठ प्रधान मंडल
कहा जाता हैं,
‘पेशवा’
मंत्रीमंडल के प्रमुख होता था
‘अमात्य’
वित्त और राजस्व कार्य संभालता था।
‘सचिव’
राजा के पत्राचार तथा दफ़्तरी-कार्य करता था।
मंत्री / वकनीस / विवरणकार
राजा का रोज़नामचा रखता था।
सूचना, गुप्तचर एवं संधि-विग्रह के
विभागों का अध्यक्ष होता था और
घरेलू मामलों की भी देख-रेख करता था
‘सुमंत’
विदेशी मामलों की देखभाल करते हुए
विदेश मन्त्री का कार्य करता था।
‘सेनापति’
सेना का प्रधान होता था।
सेना में सैनिकों की भर्ती करना,
संगठन एवं अनुशासन और साथ
ही युद्ध क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती
‘पंडितराव’
धार्मिक मामलों का मंत्री था।
अनुदानों का दायित्व निभाता था।
‘न्यायाधीश’
न्यायिक मामलो के प्रधान था ।
प्रत्येक प्रधान की सहायता के लिए
अनेक छोटे अधिकारियों के अतिरिक्त
‘दावन’, ‘मजमुआदार’, ‘फडनिस’, ‘सुबनिस’,
‘चिटनिस’, ‘जमादार’ और ‘ पोटनिस’
नामक आठ प्रमुख अधिकारी भी होते थे।
आज के जमाने के किसी भी देशों के
सविधान के बराबरी का संविधान
और कैबिनेट और राज्य मंत्रीमंडल
शिवाजी महाराज ने बनाया था ।
शिवाजी ने शासन की सुविधा के लिए
‘स्वराज’ कहे जाने वाले विजित प्रदेशों को
चार प्रान्तों में विभक्त किया था-
इस के उपरांत
हर प्रान्त के ‘सुबेदार’ को
‘प्रान्तपति’
कहाँ जाता था।
उस के पास गाँव की
अष्ट प्रधान समिति होती थी।
हर प्रांत में
अनेक गाँव होते थे।
हर गाँव में
एक ‘मुखिया’ होता था।
हर गाँव से तीन प्रकार के
राजस्व एवं कर
वसूल किए जाते थे।
‘भूमि-कर’, ‘चौथ’ एवं ‘सरदेशमुखी’,
इन में से किसानों को सिर्फ
भूमि-कर देना पड़ता था।
शिवाजी स्वयं एक सत्ताधीश होते हुए,
उन्होंने सामन्तवाद को जड़ से नष्ट करने हेतु,
अपरोक्ष रूप से कोशिश की थी।
राज्य का मालिक स्वयं को न समझकर
ईश्वर को समझते थे।
राज्य के सभी सैनिक,अधिकारी,सरदार,एवं
मंत्री ‘वेतानधारी’ होते थे।
शिवाजी इतनी समर्पक ‘वेतन-प्रणाली’
आज तक किसी राजा ने इतनी
असरदार और परिणाम कारक पद्धति से
अमल में नहीं लाई थी।
– राजेंद्र राणे.
Ref –
Shivaji Maharaj,(Part-1) Speech by Rajendra Rane
(on Youtube videos )
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